हरड़-एक बहुमूल्य रसायन

हरड़ के गुणों की जितनी भी चर्चा की जाए, कम ही होगी। रोग निवारक शक्ति बढ़ाने वाले द्रव्यों में हरड़ महत्त्वपूर्ण है। हरड़ की मज्जा में मधुर रस, नसों में अम्लरस, डंठल में तिक्तरस, छाल में कटुरस और अस्थियों में कसैला रस होता है। हरड़ वर्षा ऋतु में सेन्धा नमक के साथ, शरद ऋतु में पीपर के साथ, वसंत में मधु के साथ और ग्रीष्म में गुड के साथ परम रसायन का काम करती है। हरड़ के दूनी मुनक्का-द्राक्ष लेकर उसको घोटकर बहेड़े के बराबर गोलियां बनाकर रख दें। जो इस गोली को प्रात:काल सेवन करें, वह पित्त रोग, हृदय रोग, रक्तदोष, विषमज्वर, खांसी, प्रमेह, गुल्म इत्यादि अनेक प्रकार के रोगों पर विजय प्राप्त कर लेता है। जो हरड़ नई स्निग्ध-गोल-भारी और पानी में डूबने वाली हो, वह अत्यंत गुणवाली व श्रेष्ठ होती है। हरड़ दांतों से चबाकर खाने से अग्नि बढ़ाती है। पीसकर खाने से मल शोध करती है। पकाई हुई खाने से मल को रोकती है और भुनी हुई खाने से त्रिदोष को नष्ट करती है। हरड़ भोजन के साथ सेवन करने से बुद्धि और बल बढ़ाती है, इन्द्रियों को प्रकाशित करती है। वात, पित्त और कफ के उत्पन्न दोषों को मिटाती है।
हरड़-लवण के साथ कफ को, मिश्री के साथ पित्त को और घी के साथ वात रोगों को और गुड़ के साथ सम्पूर्ण रोगों को नष्ट करती है। कुपचन रोगों में बड़ी हरड़ उत्तम वस्तु है। अतिसार, आंव और आंतों की शिथिलता में इसका उत्तम प्रभाव दिखाई देता है। बवासीर के रोग में इसको सेन्धा नमक के साथ देते हैं। खूनी बवासीर में इसका क्वाथ बनाकर दिया जाता है।
हरड़ के कुछ खास उपयोग:-
विषम ज्वर:- शहद के साथ हरड़ चाटें।
रक्त पित्त:- हरड़ के चूर्ण को अडूसे के रस की सात भावना देकर शहद के साथ चाटने से रक्तपित्त मिटता है।
आधा सीसी:- हरड़ की गुठली को पानी के साथ पीसकर लेप करने से माइग्रेन का दर्द मिटता है।
अण्डवृद्धि:- जौ, हरड़ और सेन्धा नमक को एरण्डी के तेल में और गौमूत्र में पकाकर गरम जल के साथ देने से पुराने अण्डवृद्धि मिटती है।
पांडुरोग:- हरड़ को अरण्डी के तेल में पकाकर सात दिन तक गौमूत्र के साथ पियें।
मद-मूच्र्छा:-  हरड़ के क्वाथ से सिद्ध किये घी का सेवन करने से मद मूर्च्छा मिटती है।
दंतरोग:- हरड़ के चूर्ण का मंजन करने से दांत साफ और निरोग रहते हैं।
दमा:- हरड़ को कूटकर चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमे का दौरा मिटता है।
आमातिसार:- हरड़ का मुरब्बा खिलाने से आमातिसार और मंदाग्निी मिटती है।
बद्धकोष्ठ:- हरड़ सनाय और गुलाब के गुलकंद की गोलियां बनाकर खाने से बद्धकोष्ठ मिटता है।
हरड़ किन्हें नहीं खाना चाहिए:- इसके लिए भी शास्त्र में विधान हैं पर यह विधान सतत सेवन के लिए है। आवश्यकता होने पर सावधानीपूर्वक देने का निषेध नहीं है।
मार्ग से चलकर आये-थके हुए को।
शरीर से बहुत कमजोर को।
रूक्ष।
बहुत दुबले व्यक्ति को।
पित्त बहुत बढ़े हुए हों।
गर्भवती स्त्री को।
हरड़ का उपयोग सोच समझकर करें तो यह अत्यधिक लाभकारी है। बिना किसी अनुपान से हरड़ लेना ठीक नहीं। कुछ लोग स्वाद बदलने के चक्कर में शक्कर के साथ हरड़ का सेवन करते हैं तो कुछ लोग हरड़ को सेंककर घी में तलकर लेते हैं। ऐसी स्थिति में उसके वास्तविक रस जल जाते हैं और गुण कम हो जाते हैं। अत: हरड़ जैसी है, उसे उसी रूप में उसका चूर्ण बनाकर लेना ही हितकर है। अपनी प्रकृति के अनुसार यदि कुछ समय आवश्यकतानुसार अनुपान किया जाए तो दोष नहीं है। यद्यपि हरड़ माता के समान सदाहितकारिणी है, फिर भी कुछ स्थितियों में इसका सेवन मना है। हरड़ पवित्र है। एक अनमोल रसायन है। अच्छा होगा यदि हम इसका सेवन चिकित्सकों से उचित परामर्श के बाद ही करें।
राजेन्द्र मिश्र राज'