वृक्ष वनस्पतियों के जीवनचक्र की कुछ प्राकृतिक सीमाएं होती हैं। इनमें जीवों के समान गति नहीं होती। वे अपने स्थान पर स्थिर होकर अपने क्रि या व्यापार को चलाते हैं किन्तु वे कभी-कभी अपनी सीमाओं का अतिक्र मण कर जाते हैं और ऐसे कुछ कारनामे कर देते हैं जिसे अद्भुत और आश्चर्यजनक कहा जा सकता है। इसे ही चमत्कार कहा जाता है।
ऐसी चमत्कारिक घटनाओं की व्याख्या करने में अभी तक विज्ञान भी असमर्थ रहा है। वृक्षों की कुछ चमत्कारिक घटनाओं को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है।
वृक्ष-वनस्पतियों का गंभीर अनुसंधान करने वाले सर जगदीश चन्द्र वसु ने अपनी पुस्तक 'वनस्पतियों के स्वलेख में वृक्षों से संबंधित अनेक विस्मयकारी एवं हैरत अंग्रेज घटनाओं का उल्लेख करते हुए लिखा है कि पश्चिम बंगाल के फरीदपुर नामक स्थान पर एक ताड़ का पेड़ पूरे दिन अपनी सामान्य अवस्था में दूसरे वृक्षों के समान खड़ा रहता था किन्तु संध्याकालीन आरती के समय मंदिरों में घंटे-घडिय़ाल की आवाज को सुनकर वह जमीन पर लेट जाया करता था मानो वह भी ईश्वर की प्रार्थना कर रहा हो। प्रकृति के इस विचित्र नजारे को देखने के लिए प्रत्येक शाम मेले के समान भीड़ जुट जाती थी। मान्यता यह भी थी कि इस पेड़ के समक्ष मन की मुरादें पूरी होती हैं तथा शारीरिक एवं मानसिक रोग दूर हो जाते हैं।
इंग्लैण्ड के लिवरपूल में शिप्टन के निकट एक छोटी-सी नदी बहती है। वहां एक विलो का पेड़ है जो काफी मोटा और ऊंचा है। वह पूरी लम्बाई में दण्डवत् के समान धरती पर लेट जाता और प्रार्थना पूरी होते ही पुन: सामान्य स्थिति में खड़ा हो जाता। प्रार्थना करते समय वह बड़ा ही शांत रहता। उस समय उसमें किसी प्रकार की कोई हलचल नहीं होती थी। वह पेड़ हमेशा प्रात: काल ही जमीन पर लेटकर प्रार्थना करता था।
पेड़ों की इन अद्भुत घटनाओं में दक्षिण अफ्रीका के नारियल के पेड़ों की प्रार्थना-अम्यर्थना भी बड़ी विख्यात थी। वहां के एक कृषक के खेत में नारियल के कुछ पेड़ लगे हुए थे। एक बार वे समुद्री तूफान की चपेट में आकर एक ओर झुक से गये। तभी से इन वृक्षों को न जाने क्या हुआ कि वे प्रात: प्रतिदिन जमीन पर लेटकर नित्य पूजन करने लगे।
दिन भर ये अपनी निजी जीवन प्रक्रि या को पूरी करने के बाद शाम होते ही प्रार्थना की मुद्रा में लेट जाते थे।
पेड़ प्रार्थना करने के अलावा स्नान भी करते हैं, यह अविश्वसनीय लगता है किन्तु जगदीशचन्द्र वसु ने अपनी पुस्तक में प्रार्थना करने वाले वृक्ष, स्नान करने वाले वृक्ष आदि के बारे में विस्तार से वर्णन किया है। पुस्तकानुसार फरीदपुर के एक सरोवर के तट पर लगा ताड़ का वृक्ष प्रतिदिन शाम के समय सरोवर में स्नान करता था। संध्या होते ही वह सरोवर के जल में स्नान करने के लिए मचलने लगता था। कई प्रयासों के बाद वह अंतत: स्वयं को उस सरोवर में अपने-आप को पूरी तरह डुबो लेता था और पुन: पूर्ववत् खड़ा हो जाता था। इस कारण लोग इस वृक्ष को स्नान करने वाला ताड़' कहा करते थे।
फ्लोरिडा के समुद्रतटीय क्षेत्र में एक राइजोफोरा नामक वृक्ष है। वह पेड़ भी अपने अनोखे कृत्यों के कारण प्रसिद्ध था। इसके बारे में कहा जाता है कि जब समुद्र में तेज ज्वार-भाटे आते हैं और इनके कारण जल जब उस वृक्ष के निकट पहुंचता है तो उसकी टहनियों एवं पत्तियों में विचित्र तथा विलक्षण हलचल दिखाई देने लगती है। उसकी शाखाएं जल को छूने के प्रयास में बार-बार नीचे झुकती हैं और ऊपर उठती हैं। जब तक शाखाएं जल को पूरी तरह से स्पर्श नहीं कर लेती, यह रोचक प्रक्रि या जारी रहती है। अन्य पेड़ों की भांति इसके इस अनोखेपन का कोई रहस्य आज तक पता नहीं चल पाया है।
परमानंद परम
प्रार्थना भी करते हैं वृक्ष