परमाणु हथियारों से भी बड़ा खतरा है प्लास्टिक से

कभी जीवन को सरल बनाने के लिए ईजाद किया गया प्लास्टिक आज इंसानों की मुसीबत बन गया है। हवा में, पानी में, जमीन में मौजूद यह प्लास्टिक हमारी रगों तक पहुंच रहा है। इसके विषैले और कैंसरकारक तत्व जीवन को सभी जगह प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहे हैं। धरती पर विचर रहे इंसानों और जानवरों के शरीर में प्लास्टिक पहुंच रहा है। एक अध्ययन के अनुसार घरों को आपूर्ति किए जाने वाले दुनिया के कई हिस्सों के पानी में प्लास्टिक के सूक्ष्म कण पाए जा रहे हैं। 
प्लास्टिक के रूप में इंसानी सभ्यता के सामने बड़ी विपदा आन खड़ी हो गई है। यह रसायन रक्तबीज का रूप ले चुका है। सडऩे में सैंकड़ों साल लेने वाले इस तत्व के समूल नाश को तभी तो दुनिया कमर कसने लगी है। 11 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसके खिलाफ व्यापक मुहिम का श्रीगणेश करते हुए लोगों का आह््वान किया था कि वे 2 अक्टूबर को इस खतरनाक रसायन के कम से कम एकबार उपयोग वाले रूप से अपने घरों, दफ्तरों और कार्य क्षेत्रों को मुक्त करें। 2 अक्टूबर, 2०19 यानी पूरी दुनिया के लिए महात्मा गांधी की 15०वीं जयंती। 
गांधीजी स्वच्छता के सबसे बड़े दूत थे। उनके बताए रास्ते पर अगर लोग चले होते तो आज प्लास्टिक और उससे हमारे जल, जमीन और पर्यावरण गंदे नहीं हुए होते। करीब 5 साल पहले 2 अक्टूबर को ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान शुरू किया था। इसकी सफलता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि हाल ही में उन्हें इस काम के लिए बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने ग्लोबल गोलकीपर्स अवार्ड से नवाजा है। 
देश में साफ-सफाई और स्वच्छता एक आंदोलन बना। लोगों की सोच बदली। अब अपने रूख-रवैय्ये में यही बदलाव प्लास्टिक के लिए लाना है। क्या प्लास्टिक से पहले हम लोग खरीदारी नहीं करते थे। तब हमारे पास दादी मां का सिला हुआ झोला होता था। आज फिर झोला लेकर बाजार जाने का समय आ गया है। अगर हम सिर्फ प्लास्टिक से मुक्ति पा लें तो समझिए स्वच्छता की आधी जंग फतह कर लिए। 
प्लास्टिक को मिला लंबे जीवन का वरदान इंसानों के लिए अभिशाप साबित हो रहा है। लंबे समय तक टिकाऊ रहने के चलते इसका कचरा भी प्राकृतिक रूप से नष्ट नहीं होता है। अधिकतर प्लास्टिक खुद ब खुद नष्ट नहीं होते, वे खुद को छोटे से छोटे रूपों में तोड़ते रहते हैं। इन्हीं सूक्ष्म प्लास्टिक को जानवर और मछलियां चारे के भ्रम में खा लेते हैं। इस तरह प्लास्टिक हम लोगों के भोजन तक पहुंच रहा है। 
दुनिया के अधिकांश हिस्सों में घरों को नलों द्वारा की जा रही जलापूर्ति में भी ये प्लास्टिक के सूक्ष्म हिस्से मिलने की बात सामने आई है। नालों को जाम करके ये प्लास्टिक मच्छरों और कीटों को पनपने का अनुकूल माहौल देते हैं जिससे मच्छरजनित रोगों का प्रकोप बढ़ता है। वर्ष 195० से 197० के बीच दुनिया भर में बहुत कम मात्र में प्लास्टिक का उत्पादन होता था जिससे इसके कचरे का तुलनात्मक प्रबंध आसान था। वर्ष 197० से 199० के बीच प्लास्टिक उत्पादन तीन गुना बढ़ा। इसी अनुपात में इसके कचरे में भी बढ़ोत्तरी हुई। वर्ष 2००० के बाद इसके पहले ही दशक में जितना प्लास्टिक का उत्पादन हुआ, वह पिछले 4० साल के दौरान हुए उत्पादन से अधिक था। 
भारत में 2594० टन प्लास्टिक कचरा हर रोज पैदा होता है। यह 9 हजार एशियाई हाथियों के वजन के बराबर है। 86 बोइंग 747 विमानों के भार के बराबर है। 1०376 टन रोजाना प्लास्टिक की मात्रा ऐसी है जिसे एकत्र ही नहीं किया जाता। देश के कुल प्लास्टिक कचरे में छठा हिस्सा सिर्फ 6० प्रमुख शहरों से निकलता है। एक प्लास्टिक बोतल के अपक्षय होने में 4०० साल का समय लगता है। 
हर मिनट दुनिया भर में 1० लाख पेयजल के लिए प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं। हर साल दुनिया में 5 लाख करोड़ एकबार उपयोग होने वाले प्लास्टिक के बैग इस्तेमाल होते हैं। दुनिया में कुल जितना प्लास्टिक बनता है उसके आधे हिस्से का सिर्फ एक बार ही इस्तेमाल हो पाता है। बाकी को कचरे के हवाले कर दिया जाता है। वर्तमान में हर साल पैदा होने वाला प्लास्टिक कचरा 3० करोड़ टन है। इसका कुल वजन दुनिया की इंसानी आबादी के वजन के बराबर है। शोधकर्ताओं के अनुसार 195० के बाद से अब तक दुनिया में कुल 8.3 अरब टन प्लास्टिक पैदा किया गया। इसका 6० फीसद हिस्सा या तो लैंडफिल में जमा हुआ या फिर किसी प्राकृतिक स्थल को तबाह करने में लगा। सभी उत्पादित प्लास्टिक कचरे का सिर्फ 9 प्रतिशत हिस्सा ही रिसाइकिल हो पाता है। 12 फीसद को नष्ट कर दिया जाता है जबकि 79 फीसद लैंडफिल या किसी खुले स्थान में पड़े रहते हैं। 
भारत में 2०16 में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स के तहत राज्यों के सभी स्थानीय निकायों को ऐसी आधारभूत सुविधाएं विकसित करने पर जोर दिया गया जिससे प्लास्टिक कचरे को अलग किया जा सके और उन्हें एकत्र और प्रोसेसिंग करके खत्म किया जा सके। 2०18 में इस नियम में संशोधन हुआ और निर्माता की जवाबदेही भी तय की गई।
 अब प्लास्टिक के उत्पादक निर्माता, आयातक और पैकेजिंग में इस्तेमाल करने वाले और ब्रांड के मालिकों की खुद के द्वारा तैयार प्लास्टिक के कचरे को एकत्र करने की जिम्मेदारी होगी। 
1998 में प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने वाला सिक्किम पहला राज्य बना था। करीब 2० राज्य और केंद्र शासित प्रदेश इस आशय का नियम बना चुके हैं लेकिन लोग इन नियमों से बेखौफ प्लास्टिक का जमकर इस्तेमाल करते हैं जो आखिरकार उनकी ही सेहत का सत्यानाश करता है। 5० माइक्र ान से पतली प्लास्टिक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध है। उसके बावजूद आपको यह प्लास्टिक और कचरा सर्वसुलभ दिख जाएगा।
हमें समझना चाहिए कि सरकार हम ही बनाते हैं और गांव-शहर और देश भी हमारा है इसलिए स्वच्छता अभियान भी हमारे लिए ही है। सच तो यह है अगर आज नहीं संभले तो कल हम सरकार को कोसने के योग्य भी नहीं रहेंगे क्योंकि तब तक परिस्थितियां हमारे हाथ से निकल जाएंगी। यह तय है कि हम अपने को एक ऐसे प्लास्टिक युग में ले जा रहे हैं जहां पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं होगा। आज हम जिस प्लास्टिक को पैदा करते हैं कल वही हमें एक दिन पूरी तरह से निगल लेगा।  
किसी भी समस्या से निपटने के लिए उसकी जड़ पर प्रहार करना उसके समाधान का सीधा रास्ता है। प्लास्टिक के खतरे से निपटने के लिए सरकारें जो करेंगी वे करें लेकिन इससे बचने के लिए हमें स्वयं में बदलाव लाना होगा। प्रत्येक व्यक्ति जब यह ठान लेगा कि मेरे दैनिक जीवन में प्लास्टिक का उपयोग कम से कम या कतई नहीं होगा तो हम स्थाई समाधान की ओर बढ़ सकते हैं। साथ ही लोगों को जागरूक करें और प्लास्टिक मुक्ति के लिए सक्रि य हों। 
नरेन्द्र देवांगन