डबल इंजन के साथ ठगा गया उत्तराखंड!

बीते विधानसभा व लोकसभा चुनाव में केंद्र व राज्य में एक ही पार्टी की सरकार होने के फायदे गिनाकर उत्तराखंड की भोली भाली जनता से वोट हासिल कर सत्ता की कुर्सी तो दोनों जगह प्राप्त कर ली परन्तु उत्तराखंड की जनता के सपनों का राज्य फिर भी नहीं बन पाया। आज भी पहाड़ से पलायन जारी है। प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के कोई ठोस इन्तजाम नहीं हैं। स्वास्थ्य सेवाएं लचर हैं तो दिल्ली हरिद्वार होकर देहरादून जाने वाला राजमार्ग जिसे सन 2०1० में फोर लेन हो जाना चाहिए था ,आजतक अधर में है। कांग्रेस शासनकाल में उत्तराखंड की सड़कें गड्ढा मुक्त और उत्तर प्रदेश की सड़कें गड्ढा युक्त हुआ करती थी लेकिन आज स्थिति उलट है। उत्तर प्रदेश की सड़कें बेहतर हैं तो उत्तराखंड की सड़कों में गड्ढे ही गड्ढे हैं।
उत्तराखण्ड बने उन्नीस साल पूरे हो चुके हैं और बीसवाँ साल शुरू हो चुका है लेकिन उत्तराखण्ड के लोगों के सपने का उत्तराखण्ड सँवरना तो दूर उनकी मूलभूत समस्याएं तक हल नहीं हो पाई हैं। आज भी उत्तराखण्ड के लोगों की समस्याएं जस की तस हैं। जल, जंगल, जमीन पर अपना हक पाने के लिए उत्तराखण्डी पहले भी लड़ रहे थे, आज भी लड़ रहे हैं लेकिन उनकी सुनवाई न पहले हो पाई और न ही अब हो पा रही है। इस मुद्दे को उठाकर और पृथक राज्य मिलने पर इस मुद्दे के हल होने की आस में ही यहां के लोगों ने जिनमें अग्रणी पर्वतीय मूल की महिलाएं रही। राज्य की मांग को लेकर लम्बी लड़ाई लड़ी, अनेक आंदोलनकारियों को इसके लिए संघर्ष करते हुए पुलिस की गोलियां खाकर शहादत देनी पड़ी, कई महिलाओं को अपनी आबरू तक गंवानी पड़ी, तब जाकर लम्बे आंदोलन के बाद 9 नवम्बर सन 2००० को उत्तरांचल राज्य का जन्म हो पाया था जो अब उत्तराखण्ड के रूप में हमारे सामने है लेकिन राज्य बनने के बाद से आज 19 साल बीतने यानी उत्तराखण्ड के किशोर से बालिग होने पर भी जल, जंगल, जमीन पर स्थानीय लोगों का हक नहीं हो पाया। राज्य बनने से पहले अविभाजित उत्तर प्रदेश में यहां के पर्वतीय क्षेत्र के विकास के लिए अलग से एक मंत्रालय भी हुआ करता था लेकिन राज्य बनने के बाद हम पहाड़ के सरोकार ही भूल गए हैं।
जल,जंगल और जमीन के हक की लड़ाई के प्रणेता किशोर उपाध्याय हालांकि टिहरी से विधायक,नारायण दत्त तिवारी मंत्रिमण्डल में मंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी रह चुके हैं लेकिन फिर भी सत्तापक्ष में रहने पर भी उनकी मांगें बार बार उठाने के बावजूद आज तक पूरी नहीं हो सकीं। टिहरी बांध के प्रभावितों के पुनर्वास के लिए तो उन्हें अपनी ही सरकार के खिलाफ विधान सभा में धरना तक देना पड़ा था। फिर भी उनकी मांगें परवान नहीं चढ़ सकी। आज राज्य व केंद्र मे भाजपा की सरकार है। किशोर उपाध्याय ने एक बार फिर इन मांगों को लेकर आवाज उठानी शुरू की है। इस मुद्दे पर वे सर्वदलीय सम्मेलन भी कर चुके हैं जिसमें पर्वतीय क्षेत्र को वन प्रदेश घोषित कर यहां के निवासियों को वनवासी का दर्जा देने, पर्वतीय क्षेत्र में उगने वाली जड़ी बूटियों पर स्थानीय लोगों का हक घोषित करने,राज्य के वन व प्राकृतिक संसाधनों पर यहां के लोगों के हक की रक्षा करने व उन्हें पोषित करने ,राज्य के लोगों को वनवासी का दर्जा देकर केंद्र में उन्हें नौकरियों मे आरक्षण देने, वनाधिकार अधिनियम 2००6 तथा जैव विविधता अधिनियम 2००2 के प्रावधान राज्य में लागू करने की मांग उठाई गई है जिसके लिए किशोर उपाध्याय पहले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह से और कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव हरीश रावत से समर्थन मांग चुके हैं। 
इस मुद्दे को सरकार से जुड़े लोगों के सामने भी ले जाया गया है।चाहे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट हों या मदन कौशिक हों ,सभी ने इस मुद्दे पर सकारात्मक भरोसा दिया है लेकिन फिर भी अभी तक ये मांगे यथार्थ के धरातल पर उतर कर फलीभूत नहीं हो सकी है जिससे लगता है कि अब इस मुद्दे पर एक बड़े आंदोलन की दरकार है जिसकी  आवाज  दिल्ली तक पहुंचे । इस आंदोलन के सूत्रधार किशोर उपाध्याय का कहना है कि पर्वतीय क्षेत्र जहां संसाधनों की भारी कमी है ,वहां लोगों के घर बनाने के लिए मुफ्त खनन,घर की खिड़की दरवाजों और ईंधन के लिए सूखी लकडिय़ां मुफ्त में मिलनी चाहिए। साथ ही पढ़ाई व नौकरी के लिए वनवासी का दर्जा देकर आरक्षण पर्वतीय क्षेत्र को दिया जाना जरूरी है। 
यह मांगे कब फलीभूत होगी यह तो पता नहीं लेकिन इतना जरूर है कि इन मांगों को चाहे सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, सबका समर्थन जरूर मिल रहा है। इतना होने पर भी ये मांगें पूरी क्यों नहीं हो रही है,यह सवाल हर किसी को परेशान कर रहा है। राज्य में डबल इंजन की सरकार लाकर राज्य को भय मुक्त व भ्रष्टाचार मुक्त करने का दावा करने वाली भाजपा राज्य में दो कदम आगे बढऩा तो दूर, दस कदम पीछे हो गई है। राज्य में सरकार नाम की कोई चीज दिखाई नहीं पड़ती। विकास कार्य ठप्प है। अपराध सिर चढ़कर बढ़ रहे हैं तो महंगाई की मार से आम जन परेशान है।
दिवंगत हो चुके पूर्व मुख्य मंत्री नारायण दत्त तिवारी ने राज्य में औद्योगीकरण को बढ़ावा देकर जहाँ राज्य को आर्थिक स्वावलम्बन के रास्ते पर ले जाने की कोशिश की थी,वही बीस सूत्री कार्यक्र म में उनके रहते राज्य को लगातार चार बार देशभर में पहला स्थान मिला था लेकिन आज विकास कहीं खो सा गया है। राज्य के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष के लोग भी असन्तुष्ट दिखाई दे रहे हैं जिसके कारण राज्य स्थापना का उत्साह इस बार भी ठंडा ठंडा  सा और ठगा सा नजर आ रहा है और यह तब तक रहेगा जब तक कि राज्य के लोगों की भावनाओं का उत्तराखंड नहीं बन जाता। 
श्री गोपाल नारसन