धीमी ही सही लेकिन साहस भरी लौ के साथ एक दीपक मुझसे सवाल पूछ रहा था। दीपावली प्रकाश का पर्व है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम लंकापति रावण का विनाश करके जब १४ वर्ष की वनवास की अवधि बिताकर अयोध्या वापस लौटे तो इस खुशी में लोगों ने दीप जलाए। यह कार्तिक कृष्ण पक्ष की अमावस्या थी। इसी तरह की कई कथाएं हैं। भारत कृषि प्रधान देश है और उत्सवधर्मी। खरीफ की फसल तैयार होकर घर में आ जाती है और रबी की फसल खेतों में लहलहा रही होती है तो दीपावली मनाने का हक बनता है। ऐसी ही एक दीपावली पर बच्चों के साथ हम भी दीपक जला रहे थे, तभी उस दीपक ने सवाल किया कि अंधेरे तो बढ़ते ही जा रहे हैं, बगैर आपकी मदद के हम इन्हें दूर नहीं कर सकते। कितने ही प्रयास तो कर लिये लेकिन आप लोगों का साथ नहीं मिलता। इस बार तो वादा करो कि साथ दोगे। अंधेरे ने कई मुखौटे लगा रखे हैं, पहचानना मुश्किल हो जाता है। हमारे उजाले से मेल खाता पहनावा है उनका। मैं अपने तन को जलाकर अंधेरों से लड़ रहा तो आप मन से हमारा साथ दीजिए। उस नन्हें दीपक ने बताया यह अंधेरा है हमारे अज्ञान और अंध विश्वास का, भ्रष्टाचार और आतंकवाद जैसे कितने ही नाम इसके हैं। तन पर स्वच्छ कपड़े पहनने वाले गंदगी को मन में छिपाये हुए हैं। बड़े-बड़े यज्ञ-हवन करवाने वाले भंडारा खिलाने वाले सेठ मिलावटखोरी और जमाखोरी कर रहे हैं। नकली दवाइयां बेच रहे हैं। जनसेवा का नारा लगाने वाले जनता का हक मारकर अपनी जेब भर रहे हैं। गरीबों की जमीन हथिया रहे हैं। अधिकारी बिना रिश्वत लिये कोई काम नहीं करते। ऐसे लोग हमारे-आपके बीच ही तो छिपे हैं। उनके रहन-सहन और व्यवहार से पता ही नहीं चलता कि वे ऐसे घिनौने कृत्य भी कर रहे हैं। अभी इसी दीपावली से पहले अचानक ही प्याज के दाम आसमान पर पहुंच गये थे। महाराष्ट्र में बारिश के चलते प्याज की पैदावार प्रभावित हुई लेकिन जमाखोरों ने अपने-अपने गोदामों में प्याज का भंडार भी कर रखा था। कभी अरहर की दाल को लेकर यही प्रक्रिया अपनाई गयी थी। सरकार ने सख्ती की और जगह-जगह व्यापारियों के गोदामों पर छापा पड़ा। लाखों कुंटल दाल बरामद की गयी थी। सिंथेटिक दूध का कारोबार करने वाले भी लोगों की जान से खेल रहे हैं।
ऐसे लोगों के बारे में जानकारी मिले तो उनके खिलाफ एकजुट होकर खड़ा होना पड़ेगा क्योंकि वे जमाखोरी करके जो मुनाफा कमा रहे हैं, वह एक तरह का अपराध है और हम जानते हुए भी उसके बारे में नहीं बोल रहे तो यह अपराधी को बचाने जैसा कृत्य है। हम कर्तव्य के प्रति सचेत नहीं हैं तो इस तरह के अंधेरे को कैसे दूर कर सकते हैं। नवरात्र या अन्य अवसरों पर मंदिरों में कन्या भोज कराने वालों की लाइन लगी रहती है। कन्याओं को देवी का रूप मानते हैं। उनको पकवान खिलाने के साथ दक्षिणा भी देते हैं लेकिन लोग कन्या भ्रूण हत्या कराने में कोई संकोच नहीं करते हैंं। उस समय कन्याओं के प्रति इनका भक्तिभाव तिरोहित हो जाता है। कन्या को वे अभिशाप मानते हैं। उनका मानना रहता है कि कन्या हमारा वंश नहीं चलाएगी, इसलिए उसे गर्भ से बाहर नहीं आने देना चाहते। देश की सरकार ने कन्या भ्रूण परीक्षण को अपराध करार दे रखा है, इसलिए डाक्टरों को भी अब मोटी रकम मिलती है, तब वे बता देते हैं कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़की है अथवा लड़का। गर्भ में लड़का है तो खुशी का ठिकाना नहीं लेकिन लड़की है तो उसको गर्भ में ही मौत की नींद सुलाने वाले चाहे डाक्टर हों या उस बच्चे के माता-पिता, उन्हें किसी अंधकार से कम नहीं समझना चाहिए। आज स्थिति यह है कि जनसंख्या में लड़कों और लड़कियों का अनुपात प्रति एक हजार पर आठ सौ के करीब रह गया है, अर्थात यदि एक हजार लड़के हैं तो आठ सौ लड़कियां। कुछ प्रदेशों में तो लड़कियों का अनुपात और भी कम हो गया है। संतोष की बात है कि केरल जैसे राज्य में यह अनुपात बढ़ा है। कन्या भ्रूण हत्या जैसा कृत्य हमारे देश की संस्कृति को नष्ट कर रहा है जहां कहा जाता है कि देवता वहीं निवास करते हैं जहां नारियों की पूजा की जाती है। इसी प्रकार भ्रष्टाचार का अंधेरा भी बरकरार है बल्कि और बढ़ता ही जा रहा है। लगभग ढाई दशक पहले देश में राजनीतिकों के बड़े-बड़े घोटाले सामने आये। हमारे देश के कितने लोगों ने अपना कालाधन विदेशों के बैंकों में जमा कर रखा है और देश में भी छिपाकर रखा है। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कई बार अवसर दिया कि मामूली सा हर्जाना देकर उस धन को सफेद बना लो लेकिन बहुत कम लोगों ने यह साहस दिखाया। इनमें से कई लोगों को हम भी पहचानते होंगे और सरकार ने कहा कि ऐसे लोगों के बारे में जानकारी दो, नाम-पता गुप्त रखा जाएगा। हमे साहस दिखाना होगा कि इन सफेद पोश भ्रष्टाचारियों के बारे में सरकार को सूचित करें। यदि हम ऐसा नहीं करते है तो भ्रष्टाचार रूपी अंधेरे को कैसे मिटा पाएंगे।
आतंकवाद आज विश्व की समस्या बन चुका हैं हमारे देश में भी कितने ही युवा किसी न किसी प्रलोभन में आकर आतंकवादी बन रहे हैं। कभी उन्हें पैसों का लालच दिया जाता है तो कभी यह बताया जाता है कि ईमान-धर्म पर कुर्बानी देने से जन्नत मिलेगी। युवाओं में अज्ञानता रूपी अंधेरा छाया हुआ है। इस अज्ञानता को शिक्षा की बेहतर व्यवस्था और संस्कार युक्त परिवार मिटा सकते हैं लेकिन देश की शिक्षा व्यवस्था बदहाल है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों पर निगरानी रखने के लिए सरकार ने प्रेरणा ऐप बनाया है। उत्तर प्रदेश के बड़े-बड़े नेताओं और धन्नासेठों ने शिक्षा की दुकानें खोल रखी हैं जहां मोटी फीस तो ली जाती है लेकिन नैतिक शिक्षा नहीं मिलती। सरकार ने भी अपने स्कूल-कालेजों में इस प्रकार की शिक्षा की व्यवस्था अब तक नहीं की है। परिवार तो बिखर ही चुके हैं। माता-पिता को इतनी फुर्सत ही नहीं रह गयी है कि वे अपने बच्चे पर ध्यान दे सकें कि वह क्या कर रहा है और क्या सीख रहा है। इसी का फायदा अराजक तत्व उठाते हैंं आतंकवाद के आरोप में पकड़े गये कितने ही युवाओं की यही कहानी है। इस अंधकार को यदि हम पहचान नहीं पा रहे और दूर नहीं कर पा रहे तो दीपावली मनाने का हमारा उद्देश्य ही पूरा नहीं होगा। अंधेरे को तलाश करें तो देश के कोने-कोने में छिपा मिल जाएगा। यह उन छात्रों के अंदर मौजूद है जो मेहनत से पढ़ाई नहीं करते और नकल करके परीक्षा उत्तीर्ण करना चाहते हैं। यह अंधेरा उन शिक्षा माफियाओं के अंदर है जो मोटी फीस लेकर कोचिंग चलाते हैं और परीक्षा में नकल करवाने का ठेका लेते हैं। यह अंधेरा उन अधिकारियों और कर्मचारियों के अंदर है जो हर काम के लिए रिश्वत लेते हैं। यह अंधेरा व्यापारियों के अंदर है जो मिलावटखोरी, जमाखोरी और नकली सामान बेचकर जनता को ठग रहे हैं। यह अंधेरा उन उद्योगपतियों के अंदर है जो खुद तो मोटी कमायी करते हैं और कर्मचारियों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य नहीं देते। यह अंधेरा उन डाक्टरों और वकीलों के अंदर है जो ईमानदारी से अपना काम नहीं करते। डाक्टर यदि मरीज को इलाज के नाम पर ठगते हैं और वकील दोनों पक्षों को उलझाकर फीस वसूलते रहते हैं तो उनको अंधकार का प्रतीक ही माना जाएगा और यह अंधेरा उन कथित राजनेताओं के अंदर है जो जनता के भरोसे का खून करते हैं, जनता का विकास न करके सिर्फ अपना विकास करते हैं। इसीलिए नन्हा दीपक बोला हम अंधेरे को अब तक दूर नहीं कर पाये। यह विभिन्न रूपों में हमारे देश के अंदर मौजूद है और तरह-तरह के मुखौटे लगाये हुए हैं। सबसे पहले तो इस अंधियारे को पहचानना होगा और फिर अपने अज्ञान रूपी अंधेरे को भी दूर भगाना पड़ेगा। इसके बाद हमें साहस दिखाकर इस अंधेरे को ललकारना होगा कि अब इस धरती पर तुम्हारे लिए जगह नहीं बची है। इस तरह जब हम दीपावली मनाएंगे तो निश्चित रूप से अंधकार का नामोनिशान मिटा देंगे (अशोक त्रिपाठी-हिफी)
एक नन्हें दीपक का सवाल