मुद्दा: कैसा हो देश का आधुनिक शहर

ज्यादा पुरानी बात नहीं है जब लोग शहर देखने-घूमने आया करते थे। शहर उन्हें लालायित करते थे। यहां की गगनचुंबी इमारतें, यहां की चमकदार सड़कें, उस पर दौड़ती- भागती गाडिय़ां यहां का रहन-सहन, रात में जगमगाती लाइटें पर अब लोग शहरों से दूर भागने लगे हैं। वजह साफ और सहज है। यहां रहने लायक, जीवन जीने लायक हालात नहीं रहे। अपनी बुनियादी सुविधाओं के मुकाबले दस-दस गुना आबादी का बोझ ढो रहे ये शहर चरमरा गए हैं। बिजली, पानी, आवागमन, पर्यावरण, खुली जगह और हरियाली, तमाम मानकों पर शहर बदहाल हो चले हैं। आजीविका की विवशता भले ही लोगों को यहां बांधकर रखे हुए हो लेकिन उनका मन अब कहीं सुदूर जाकर रहने का ही है। 
शहरवासियों की यह व्यथा हाल ही में जारी इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट(ईआइयू) की रहने लायक दुनिया के शहरों की रैंकिंग में भी झलकती है। इस सालाना रैंकिंग में दुनिया के 14० शहरों को पांच मानकों, स्वास्थ्य सेवा, संस्कृति, पर्यावरण, शिक्षा और बुनियादी ढांचा के आधार पर आंका गया। देश के दो सबसे आधुनिक और बड़े शहरों दिल्ली और मुंबई को इसमें जगह मिली है लेकिन अफसोस ये दोनों शहर क्र मश: 118वें और 119वें पायदान पर हैं। ऐसे में यह हम सबके लिए बड़ा मुद्दा है कि आजादी के 7 दशक बाद भी हम रहने लायक शहर क्यों नहीं बना सके? 
आजादी के 72 साल बाद भी भारत एक ऐसा शहर विकसित नहीं कर पाया है जो जीवन जीने के अंतर्राष्ट्रीय मानकों या भारतीय मूल्यों पर खरा उतरता हो। भारत सरकार द्वारा शहरों के आधारभूत ढांचे को विकसित करने के लिए प्रारंभ की गई स्मार्ट सिटी योजना के प्रथम चरण में तय प्रक्रि या के तहत चयनित किए गए सौ शहरों में अभी बहुत बड़े बदलाव देखने को नहीं मिल रहे हैं। 
खराब वायु गुणवत्ता, संस्कृति और पर्यावरण स्कोर में गिरावट के चलते दिल्ली शहर पिछले साल की रैंकिंग से छह स्थान नीचे खिसक चुकी है। हालांकि दिल्ली की वायु गुणवत्ता में स्थिरता आती दिख रही है। सेंटर फॉर साइंड एंड एनवायरमेंट का एक अध्ययन बताता है कि दिल्ली में पीएम 2.5 स्तर कम हो रहा है। साल के सबसे प्रदूषित रहने वाले दिनों की संख्या घट रही है। 
भारत को गांव और गांधी का देश कहा जाता है। मुख्यत: रोजगार के चलते लोग शहरों का रूख करते हैं। गांवों से बेहतर जीवन की तलाश में युवा वर्ग तेजी से शहरों की ओर अपना रूख कर रहा है। गांव लगातार खाली हो रहे हैं और शहरों पर दबाव बढ़ रहा है। ऐसे में अगर शहरों को स्वच्छ व सुरक्षित जीवन जीने के हिसाब से नहीं विकसित किया गया तो भारत की बड़ी आबादी बीमारी व बेकारी की चपेट में होगी। खुशहाल और आरामदायक जीवनयापन के लिए उन्हें अच्छी गुणवत्ता वाले घर और कम लागत की भौतिक एवं पानी, साफ-सफाई, बिजली, स्वच्छ हवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और मनोरंजन जैसी सामाजिक बुनियादी सुविधाओं की जरूरत होती है। 
शहरों में उद्योग भी होते हैं जो लोगों को अर्थव्यवस्था से जोड़ते हैं और रोजगार तथा उत्पादन में प्रभावी भूमिका निभाते हैं। इन तमाम मानकों को देश में प्रस्तावित स्मार्ट सिटी विकसित करने वाली योजना में शामिल किया गया है। शहरों की बढ़ती जनसंख्या का एक और कारण यहां जीवन के बेहतर तौर-तरीके, यातायात व अन्य सुविधाओं का होना है। वहीं दूसरी तरफ गांव में इनका आभाव खासतौर से युवाओं को शहर की ओर ले जाता है। बढ़ते शहरों में बिगड़ती सभ्यता के पीछे बड़ी भीड़ भी हो जाती है और बिगड़ती-बदलती सभ्यता व्याधियों, अनियमितताओं और अपराधों को ही जन्म देती है। 
सार्वजनिक वाहनों और गैर स्वचालित आवागमन के साधनों के इस्तेमाल की बढ़ती प्रवृत्ति, ज्यादा स्वच्छ तकनीक और ईंधन से चलने वाले वाहनों का इस्तेमाल, सबसे संवेदनशील इलाकों पर ध्यान केंद्रित करके और निर्माण स्थलों पर उठने वाले धूल के गुबार पर नियंत्रण से शहरों को प्रदूषण मुक्त किया जा सकता है। अपने शहरों में जीवन की गुणवत्ता बेहतर बनाने के लिए और अधिक मेहनत करने की आवश्यकता है। हमारे शहरों में रहने की जगह संकट में हैं। वे तेजी से शहरीकरण का खामियाजा भुगत रही हैं। जनगणना 2०11 के अनुसार देश की लगभग 31 फीसद आबादी 3.3 फीसद जमीन के रकबे में निवास करती है।
स्मार्ट सिटी के तीन आयाम हैं प्रतिस्पर्धा, टिकाऊपन, गुणवत्तापरक। प्रतिस्पर्धा का मतलब है शहर की अधिक से अधिक रोजगार सृजन की क्षमता और निवेश व लोगों को आकर्षित करने की क्षमता। ऐसे शहर द्वारा मुहैय्या कराए जाने वाले कम बाधायुक्त कारोबार की दशाएं और गुणवत्तापरक जीवन इसकी प्रतिस्पर्धा को निर्धारित करती हैं। टिकाऊपन में सामाजिक, पर्यावरण और वित्तीय परिस्थितियां शामिल होती हैं। गुणवत्तापरक जीवन में सुरक्षा और संरक्षा, समावेशीपन, मनोरंजन, सुलभ जनसेवाएं, गुणवत्तापरक जीवन और प्रशासन में भागीदारी के मौके शामिल होते हैं। 
स्मार्ट सिटी के तीन आधारभूत स्तंभ प्रशासन, बुनियादी और सामाजिक सेवाओं के अलावा कुछ अहम सुविधाएं भी होती हैं। इन सुविधाओं से ही शहर लोगों के रहने के अनुकूल माने जाते हैं। सभी सेवाएं वित्तीय रूप से टिकाऊ होनी चाहिए जिससे गुणवत्ता वाली सुविधाएं देने के दौरान धन बाधा न खड़ी हो। ऊर्जा की चिंता स्मार्ट सिटी का अहम अंग है। यातायात प्रणाली, लाइटिंग और अन्य सभी ऊर्जा की जरूरत वाली सुविधाओं में कुशल ऊर्जा इस्तेमाल की प्रक्रि याओं का इस्तेमाल किया जाता है। 
आपूर्ति को बढ़ाकर मांग को पूरी करने के साथ स्मार्ट सिटी मांग प्रबंधन पर खास जोर देती हैं। इसके लिए बचत को प्रोत्साहित और अत्यधिक खपत को हतोत्साहित किया जाता है। शहर से जुड़ी किसी भी सेवा से संबंधित समस्त सूचनाएं, आंकड़े, तथ्य आदि सभी को सुलभ हों। किसी भी विभाग की कोई घोषणा, नियम और कानून-कायदों के जानकारी सभी लोगों तक पहुंचनी चाहिए। 
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से हैं। लिहाजा स्वास्थ्य के लिए बड़ा जोखिम बने हुए हैं। स्वच्छ तकनीक से इस प्रवृत्ति को पीछे धकेला जा सकता है। नवोन्मेष के लिए पीपीपी सरकार को यह सहूलियत देती है कि वह निजी क्षेत्र की क्षमता का इस्तेमाल कर सके। 
आईसीटी का व्यापक इस्तेमाल आवश्यक है क्योंकि इसी से सूचनाओं का आदान- प्रदान और तेज संचार संभव है। अधिकांश सेवाएं आईसीटी आश्रित होनी चाहिए। इससे यात्र करने की जरूरत खत्म हो जाएगी। लोग घर बैठे सुविधाएं हासिल कर सकेंगे। इससे जाम, प्रदूषण, ऊर्जा इस्तेमाल सब कम होगा। प्रदर्शन में सुधार के लिए ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए जिससे हर आदमी प्रत्येक सेवा का मूल्यांकन कर सके। 
नरेन्द्र देवांगन